অধ্যায় ২ পদ্য ৭০
The Gita – Chapter 2 – Shloka 70
Shloka 70
As the river enters the ocean without affecting the ocean or disturbing it, so the desires enter the person who has obtained Supreme peace, but not the person who is already filled with desires and wants more and more.
जैसे नाना नदियों के जल सब ओर से परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं, वैसे ही सब भोग जिस स्थित प्रज्ञ पुरुष में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किये बिना ही समा जाते हैं, वही पुरुष परम शान्ति को प्राप्त होता है, भोगों को चाहने वाला नहीं ।। ७० ।।
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